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मंगलवार, 1 सितंबर 2009

आख़िर कब तक हम चुप रहेगे ??

पाकिस्तान के इस खंडन पर अमेरिका की प्रतिक्रिया अपेक्षित ही नहीं, अनिवार्य भी है कि उसने हारपून मिसाइल में कोई फेरबदल नहीं किया है। इस सनसनीखेज मामले में अमेरिका की प्रतिक्रिया कुछ भी हो, कम से कम भारत को केवल चिंता प्रकट कर शांत नहीं होना चाहिए। उसे यह सुनिश्चित करना चाहिए कि अमेरिका पाकिस्तान की भारत विरोधी हरकतों की अनदेखी करने का सिलसिला बंद करे, क्योंकि ऐसा करना अमेरिकी प्रशासन की आदत बन गई है। इस संदर्भ में बुश और ओबामा प्रशासन में भेद करना कठिन है। क्या यह आश्चर्यजनक नहीं कि पाकिस्तान ने हारपून मिसाइल में अवैध रूप से बदलाव कर लिया और फिर भी ओबामा प्रशासन ने पाकिस्तानी प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी के समक्ष केवल विरोध दर्ज कराना उचित समझा? क्या अमेरिका को इससे आगे और कुछ नहीं करना चाहिए था? ओबामा प्रशासन के ऐसे ढुलमुल रवैये को देखते हुए इसकी आशंका बढ़ गई है कि वह इस मुद्दे पर भविष्य में पाकिस्तान से चर्चा ही न करे। चूंकि यह पहली बार नहीं जब यह उजागर हुआ हो कि पाकिस्तान आतंकवाद से लड़ने के नाम पर अमेरिका से मिलने वाली मदद का दुरुपयोग कर रहा है और वह भी भारत के खिलाफ खुद को सशक्त बनाने के लिए। यह एक तथ्य है कि पाकिस्तान ने अमेरिका से मिली सैन्य मदद का इस्तेमाल भारत के ही खिलाफ किया है। इसी तरह इससे भी इनकार नहीं किया जा सकता कि वह आतंकवाद से लड़ने के लिए अमेरिका एवं अन्य देशों से जो भी सहायता अर्जित कर रहा है उसका इस्तेमाल अन्य कार्यो में कर रहा है। इसके प्रमाण भी सामने आ चुके हैं, लेकिन पश्चिमी देश और विशेष रूप से अमेरिका हर बार उसके समक्ष हथियार डाल देता है। बहाना यह होता है कि उसे पाकिस्तान की मदद से आतंकवाद का खात्मा करना है।

पिछले कुछ वर्षो में पाकिस्तान ने अपने यहां उपजे आतंकवाद का जैसा दोहन किया है उसकी मिसाल मिलनी कठिन है। बुश प्रशासन की तरह ओबामा प्रशासन भी इसी नीति पर चल रहा है कि पाकिस्तान को हर तरह से संतुष्ट किया जाए और इसीलिए तमाम शर्तो के उल्लंघन के बावजूद पाकिस्तान को अमेरिकी मदद बदस्तूर जारी है। भले ही अमेरिकी प्रशासन यह दावा करता हो कि उसे भारतीय हितों की परवाह है, लेकिन सच तो यह है कि उसे उन खतरों की कहीं कोई चिंता नहीं जो पाकिस्तान की सीमा पर उभर रहे हैं। यही कारण है कि वह पाकिस्तान की सीमा पर फल-फूल रहे उस आतंकवाद पर कहीं कोई ध्यान नहीं दे रहा जो भारत के लिए खतरा बना हुआ है। स्थिति यह है कि वह मसूद अजहर सरीखे आतंकी सरगना पर प्रतिबंध लगाने की भारत की पहल को भी निष्प्रभावी करने में लगा हुआ है। यह तो पाकिस्तान परस्ती की पराकाष्ठा है। इसका कहीं कोई औचित्य नहीं कि भारत अमेरिका से अपने मधुर संबंधों का उल्लेख भी करे और उसकी पाकिस्तान परस्ती को भी बर्दाश्त करे। पता नहीं कब देश के नीति-नियंता अमेरिका के समक्ष यह स्पष्ट करने की जरूरत समझेंगे कि पाकिस्तान के संदर्भ में उसने जो नीति अपना रखी है वह भारतीय हितों को गंभीर आघात पहुंचा रही है?

5 टिप्‍पणियां:

  1. इसमे कोई शक नहीं कि पाकिस्तान ने आतंकवाद के उन्मूलन का बहाना बना कर खूब धन बटोरा है. लेकिन अमेरिका न जाने किस अज्ञानता या लाचारी वश उसके पंजे से मुक्त नहीं हो पा रहा है ।

    सामयिक विषय पर आपकी लेखनी ने ज़बरदस्त आलेख रचा है.....बधाई !

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  2. विश्व चौधरी का केवल चेहरा बदला है नीयत नही । याद कीजिये उस वक्त हमने इन्हे कितना सर आँखो पर बिठा लिया था ।

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  3. पता नहीं कब देश के नीति-नियंता अमेरिका के समक्ष यह स्पष्ट करने की जरूरत समझेंगे कि पाकिस्तान के संदर्भ में उसने जो नीति अपना रखी है वह भारतीय हितों को गंभीर आघात पहुंचा रही है?

    आपकी चिंता बिलकुल जायज़ है, हर किसी को अब इस बात कि चिंता हो रही है. इस मामले में हम आपके साथ हैं.

    एक जागरूकता भरा सारगर्भित लेख लिखने के लिए बधाई.

    चन्द्र मोहन गुप्त
    जयपुर

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