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शनिवार, 19 सितंबर 2009

देवी पूजा क्यों ?


सनातन धर्म सदा से शक्ति का उपासक रहा है। देवताओं की तुलना में देवियों की उपासना अधिक होती रही है। देवताओं के नामों के उच्चारण में उनकी शक्ति का ही नाम पहले आता है। साधारण देवों की बात क्या करें, संसार के पालनकर्ता विष्णु और महेश के साथ भी यही बात है। विष्णु अथवा नारायण की पत्नी हैं लक्ष्मी, इसलिए हम लक्ष्मीनारायण उच्चारण करते हैं। इसी प्रकार गौरीशंकर या भवानीशंकर संबोधित किया जाता है। विष्णु के अवतार राम और कृष्ण की बात करें, तो हम सीताराम, राधाकृष्ण संबोधित करते हैं।
तात्पर्य यह है कि ईश्वर या देवता से उसकी शक्ति का महत्व अधिक है। इसीलिए एक कवि ने राधा को कृष्ण से ऊपर मानते हुए लिखा—
मेरी भवबाधा हरौ, राधानागरि सोय।
जा तन की झांई पड़े, श्याम हरित दुति होय।।
अपनी सांसारिक बाधा दूर करने के लिए महाकवि बिहारी राधा से ही प्रार्थना करते हैं, न कि कृष्ण से। उनका मानना है कि राधा के प्रकाश के कारण ही कृष्ण का रंग हरा हो गया, अन्यथा वे काले रहते।
और तो और, श्रीराम के परम भक्त गोस्वामी तुलसीदास ने भी सीता का उल्लेख पहले और राम का बाद में किया। उनकी यह पंक्ति सर्वविदित है-
सियाराममय सब जग जानी।
करहुं प्रनाम जोरि जुग पानी।।

कब शुरू हुई शक्ति पूजा

शक्ति की पूजा कब शुरू हुई, यह नहीं कहा जा सकता। यह अनादि काल से होता आ रहा है। कृष्णचरित्र के अनुसार, श्रीकृष्ण की दिनचर्या में दुर्गा की उपासना सम्मिलित थी। श्रीराम ने भी रावण-वध के पूर्व शक्तिपूजा की थी। इसी को आधार बनाकर महाकवि निराला ने अपनी अति प्रसिद्ध कविता 'राम की शक्तिपूजा' लिखी।
वैदिक काल में भी शक्तिपूजा प्रचलित थी। वैदिक साहित्य में विशेषकर यजुर्वेद और अथर्ववेद में शक्तिपूजा का उल्लेख विशेष रूप से प्राप्त होता है। उपनिषदों में भी शक्तिपूजा की प्रधानता है। पुराणों में सर्वत्र शक्ति को महत्व मिला है।
यह उक्ति सभी जानते हैं कि शिव भी शिवा अर्थात पार्वती के बिना निर्जीव के समान हैं। आदि शंकराचार्य ने अपनी प्रसिद्ध कृति 'सौंदर्य लहरी' में स्पष्ट किया है कि शिव जब शक्ति से संपन्न होते हैं, तभी प्रभावशाली होते हैं।
इतिहास इस बात का साक्षी है कि सदा शक्ति का ही बोलबाला रहा है। मार्कडेय पुराण पर आधारित प्रसिद्ध पुस्तक 'दुर्गासप्तशती' में यह स्पष्ट उल्लेख है कि जिस सिंहवाहिनी दुर्गा ने राक्षसों का वध किया, वे ब्रह्मा, विष्णु और महेश के शरीर से निकली शक्ति से ही निर्मित हुई थीं। इसलिए यदि राक्षसों पर विजय प्राप्त की गई, तो शक्ति ने ही, ब्रह्मा, विष्णु, महेश या अन्य देवताओं ने नहीं।
 
ब्रह्म से श्रेष्ठ शक्ति

नवरात्र के अवसर पर बहुत से लोग दुर्गा सप्तशती का पाठ करते हैं। सामान्य दिनों में भी कई लोग इसका पाठ कर मनोवांछित फल प्राप्त करते हैं। ब्रह्म को सर्वोपरि माना जाता है, लेकिन शक्ति ब्रह्म से भी श्रेष्ठतर है। शक्ति की उपासना के संबंध में विश्व-प्रसिद्ध पीतांबरा पीठ, दतिया के संस्थापक श्री स्वामी जी ने एक श्रद्धालु के प्रश्न के उत्तार में जो कहा उसका तात्पर्य है- 'ब्रह्म तटस्थ है। वह सृष्टि के निर्माण, पालन या संहार का कारण नहीं है। यह सब ब्रह्म की शक्ति द्वारा ही संपन्न होता है। इसीलिए हमें इस शक्ति को माता-स्वरूप मान कर उसकी उपासना करनी चाहिए, तभी हम अपने अभीष्ट को प्राप्त कर सकते हैं। इस प्रकार सारा विश्व ही शक्तिमय है।'
शक्ति के महत्व के कारण ही भारत में अनेक शक्तिपीठ हैं। शक्तिपीठों की संख्या के संबंध में भिन्न-भिन्न मत हैं, लेकिन 'तंत्रचूड़ामणि' ग्रंथ के अनुसार, ऐसे 51 शक्तिपीठ हैं। इनमें कुछ प्रमुख के नाम हैं-ज्वालामुखी, कामाख्या, त्रिपुरसुंदरी, वाराही, काली, अंबिका, भ्रामरी, ललिता आदि।
 
इक्यावन शक्तिपीठ

एक कथा है कि दक्ष के यज्ञ-कुंड में शिवप्रिया सती ने अपनी आहुति दे दी थी। इसे देखकर शिव ने रौद्र रूप धारण कर लिया। उन्होंने सती को अपने कंधे पर लादकर अंतरिक्ष में चक्कर काटना शुरू कर दिया। सड़ते हुए शव को, देवताओं के अनुरोध पर विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से टुकड़े-टुकड़े कर दिया। जहां-जहां ये टुकड़े गिरे, वहां-वहां एक शक्तिपीठ का निर्माण हो गया।
ऐसे इक्यावन शक्तिपीठों के अलावा, कुछ ऐसे भी शक्तिपीठ हैं, जो सती के अंगों के कारण नहीं बने। उस स्थान पर श्रद्धालु युगों से देवी की पूजा करते आ रहे हैं, इसलिए वह स्थान ऊर्जा-पूरित हो गया और उसे शक्तिपीठ की संज्ञा मिल गई। ऐसे स्थानों में हिमाचल की चिंत्यपूर्णी, नैनीताल की नैना देवी, प्रसिद्ध तीर्थस्थान वैष्णो देवी, उत्तार प्रदेश की विंध्यवासिनी आदि के नाम लिए जा सकते हैं। इसलिए कई स्थानों पर शक्तिपीठों की संख्या एक सौ आठ बताई जाती है।
 
मातृ-स्वरूपा शक्ति

शक्ति के रूप में उपासना का एक महत्वपूर्ण कारण यह है कि शक्ति देवी-रूपा या मातृ-स्वरूपा हैं। माता के अंदर वात्सल्य-भाव मौजूद होता है। वे करुणामयी हैं। भक्तों की विपत्तिा-आपत्तिसहन नहीं कर पाती हैं। इसलिए ऐसा माना जाता है कि इनसे की गई प्रार्थना तत्काल और निश्चित फल देती है। ऐसी सर्वशक्तिमयी माता के रहते किसी और की आराधना-पूजा क्यों की जाए? यही विश्वास हमें शक्ति साधना की ओर प्रेरित करता है।

- डॉ. भगवतीशरण मिश्र

2 टिप्‍पणियां:

  1. “सर्वमङ्गलमङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
    शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते॥”


    नवरात्र पर्व की हार्दिक शुभकामनाये .

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  2. भाई वाह मिश्राजी..........ख़ूब लिखा ..बहुत खूब लिखा

    बधाई !

    जवाब देंहटाएं

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