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शुक्रवार, 17 जुलाई 2009

दाल का झटका ज़ोर से लगे ..................तडके के दिन गए !!!!


मालूम है, दाल का क्या भाव है? 90 रुपये किलो। महंगाई की मार और ऊपर से सूखे के खतरे के कारण अरहर दाल की कीमत चीनी व खाद्य तेल से भी ऊपर निकल गई है। ऐसे में गरीब क्या, बड़ों के लिए भी दाल गलना मुश्किल है। दाल की पैदावार पहले ही घट रही थी और मौसम के बिगड़े मिजाज ने खरीफ की बुवाई चौपट कर दी है। मौके की नजाकत देख विदेशी बाजार में भी दालें सातवें आसमान पर पहुंच गई हैं।

राष्ट्रीय राजधानी के खुदरा बाजार में अरहर दाल 85 से 90 रुपये प्रति किलो के भाव बिक रही है, जबकि उड़द व मूंग दाल भी इसी की देखादेखी 65 से 68 रुपये प्रति किलो के स्तर पर जा पहुंची हैं। घरेलू बाजार में भड़की महंगाई से विश्व बाजार में भी दालों की कीमतें बहुत बढ़ गई हैं। विदेश से मुंबई बंदरगाह पर पहुंची अरहर पिछले 15 दिनों में 4 हजार 200 रुपये प्रति क्विंटल से बढ़कर 5 हजार 500 रुपये प्रति क्विंटल हो गई है। मई में यही अरहर 3 हजार 600 रुपये प्रति क्विंटल थी।

एक आंकड़े के अनुसार पिछले सीजन 2008-09 मेंअरहर की पैदावार में 25 फीसदी की कमी आई थी, जबकि दलहन की कुल पैदावार में नौ फीसदी की गिरावट दर्ज हुई थी। वहीं चालू खरीफ सीजन में हालात और भी नाजुक हैं, जब सूखे की वजह से बुवाई ही नहीं हो पाई है। जिंस बाजार में दालों की कीमतें लगातार बढ़ रही हैं। मांग व आपूर्ति में पांच लाख टन का भारी अंतर है, जिसे आयात से पूरा किया जा सकता है। लेकिन विश्व बाजार में फिलहाल अरहर सिर्फ म्यांमार में उपलब्ध है, जो निजी व्यापारियों के पास है। यहां से अब तक 2.5 लाख टन अरहर का आयात हो चुका है।

दालों में इस तेजी पर लगाम लगाने को लेकर सरकार का रुख स्पष्ट नहीं है। अगर सरकार की ओर से इस पर तत्काल पहल नहीं की गई तो अरहर दाल 100 रुपये प्रति किलो के स्तर को भी पार कर जाए तो अचरज नहीं। दरअसल, दलहन आयात से जुड़े सूत्रों का कहना है कि अक्टूबर तक म्यांमार के अलावा अफ्रीकी देशों, मोजांबिक, केन्या, मलावी और तंजानिया जैसे देशों से भी थोड़ी बहुत अरहर आयात की जा सकती है। दिसंबर तक घरेलू दालें बाजार में आ जाएंगी, जिससे हालात में पर्याप्त सुधार होगा। दाल और बेसन की जरूरतों को पूरा करने में कनाडा से आयातित मटर महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। चालू साल में अब तक 10 लाख टन मटर का आयात हो चुका है।

इसी लिए तो कहा जाने लगा है कि अब दल में तड़का नहीं बल्कि दाल का झटका ज़ोर से लगे |

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